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ज्ञानवापी मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण की साक्ष्य-शिवाबावनी…

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 57 (13) के तहत सामान्य इतिहास की पुस्तकों में भी वर्णित ऐतिहासिक तथ्यों को साक्ष्य के तौर पर मान्यता है| अयोध्या के मुकदमे में भी सर्वोच्च और उच्च न्यायालय ने ऐसे ऐतिहासिक साक्ष्य को मान्यता दी है| काशी विश्वनाथ के ज्ञानवापी मामले में कोर्ट ने संदर्भ के तौर पर इतिहासकार डॉ अनंत सदाशिव अलतेकर की वर्ष 1937 में प्रकाशित पुस्तक “हिस्ट्री ऑफ बनारस” में दर्ज तथ्य भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 ई के अंतर्गत महत्वपूर्ण माने है|

रीतिकाल के कवि भूषण ने हिंदी कविता को अपनी ओजस्वी राष्ट्रीय और कर्तव्य प्रायता लेखनी से संपूर्ण किया| उन्होंने कविता को वीरत्व और स्वाभिमान का गौरव प्रदान किया| वीर रस के अंतर्गत मानव जीवन की ओजस्वी-वृति का समावेश होता है| इस रस का आधार उत्साह है| उत्साह तत्व पर ही समग्र मानव जाति का कर्मठ जीवन आधारित है| उत्साह से ही विकास संभव है| भूषण ने अपने युग के संघर्षमय जीवन की सुंदर अभिव्यक्ति अपने काव्य में की है |उनकी ‘शिवा बावनी’ काव्य रचना से पता चलता है कि मुसलमान ने विविध प्रकार के अत्याचार किए| हिंदुओं के तीर्थ स्थान को नष्ट किया| वीर शिवाजी ने स्वयं मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, प्रयाग-बनारस आदि तीर्थ स्थलों की यात्रा की| तब भूषण ने शिवाजी द्वारा तीर्थ रक्षा की प्रशंसा में लिखा—

“काशी हूं की कल गई मथुरा मसीत भई |
शिवाजी ने हो तो सुनति होती सबकी”

ऐतिहासिक तथ्य के साक्ष्य दो रूप में मिलते हैं एक अंतर साक्ष्य के रूप में और दूसरे बाहय साक्ष्य के रूप में बाहय साक्ष्य के अंतर्गत साहित्यिक सामग्री तथा दूसरे रूप में शिलालेख तथा अन्य प्राचीन ऐतिहासिक स्थानों के निर्देश भी होते हैं| ये शिलालेख प्राचीन इतिहास पर भी प्रकाश डालते हैं और ऐतिहासिक स्थानों पर भी—

कबीर चौरा, काशी
अस्सी घाट, काशी

इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक सामग्री का पर्याप्त ज्ञान हमें जन्म श्रुतियों द्वारा भी प्राप्त होता है| जन श्रुतिया यद्यपि विशेष प्रमाणिक तो नहीं होती, तथापि उनके द्वारा सत्य की और कुछ संकेत तो अवश्य मिलता ही है |’शिवा बावनी का मूल अंश इसका प्रमाण है—

“गोरा गणपति आप औरंग को देत ताप
आपके मकान सब मारि गये दबकी”

अर्थात गोरा और गणपति सभी औरंगजेब के ताप के सामने हार गए, जिसने भी विरोध किया वह मर गया| अच्छे-अच्छे दुबकी लगाकर बैठ गए |

“खोदि डोर देवी देव सहर मुहल्ला बांके, लाखन तुरुक कीन्हे छुट्ी गई तब की||
भूषण मन्नत भाग्य कासीपति विश्वनाथ, और कौन गिनती में भूली गति भव की”|

इस पद में उल्लेखित घटनाएं-प्रसंग इतिहास सम्मत है|

औरंगजेब ने सन 1669 इसवीं में दोहरा केशव राव को मथुरा में तोड़ा था| इसे महाराज वीर सिंह देव ने 33 लाख मुद्रा लगाकर बनवाया था| सन 1669 इसवीं में ही औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा था| स्थानीय लोकमत (जन श्रुति) है कि वह मूर्ति ज्ञानवापी कूप में जा पड़ी थी और आज भी वह मूर्ति वही है|

15वीं शताब्दी में संस्कृत का केंद्र राजस्थान से हटकर मध्य देश हो गया| इस्लाम की प्रतिद्वंता से जनता के हृदय में अशांति के साथ क्रांति भी जागृत हुई| इस धार्मिक अव्यवस्था के फलस्वरुप धर्म की जो भावना परंपराओं के रूप में चली आ रही थी, वह अब चारों ओर से आत्मरक्षा और शत्रु विरोध के रूप में उठी तथा धर्म की मर्यादा में एवं धर्म की रक्षा में अनेक संदेश कवियों की लेखनी से निकल पड़े| इसमें सबसे ईमानदार महाकवि भूषण थे| उनके पदों में — ‘हिंदूनन’, ‘राम’, जनेऊ, हिंदूवान, पुराण, धरा में धर्म राख्यो आदि शब्दावली इसका प्रमाण है|

महाकवि भूषण का जन्म कल संवत 1617 है| चित्रकूट के सोलंकी राजा ने इन्हें कवि भूषण की उपाधि दी थी| यद्यपि ये कई राजाओं के यहां रहे| आखिर में उनके मन के अनुकूल आश्रय दाता जो कि ईनके वीर काव्य के नायक हुए, वें हैं–छत्रपति महाराज शिवाजी| पन्ना नरेश महाराज छत्रसाल के यहां थी इनका बहुत सम्मान था| भूषण स्पष्ट घोषणा करते हैं–

“सिवा को बखानों कि बखानों छत्रसाल को”

ये दोनों महाराज अन्याय दमन में तत्पर, हिंदू धर्म के संरक्षक इतिहास प्रसिद्ध वीर थे| इन नायकों के प्रति प्रतिष्ठा और सम्मान हिंदू जनता के हृदय में तब भी और आज भी निरंतर बढ़ रहा है| इसीलिए भूषण की, शिवबावनी जनता के हृदय की संपत्ति हो गई—-

डाढी के रखैयन की डाटी सी रहति छाती
बाढ़ी मरजाद जस-हृदद हिंदूवाने की,
कढि गई रैयत के मन की कसक सब,
मिटी गई ठसक तमाम तुरकाने की||

इस वीरता-वर्णन में कवियों-से छोटी खुशामद या आश्चर्य दाताओं की प्रशंसा-प्रथा का अनुकरण मात्र नहीं है| इन वीरों का हिंदू जनता जिसे उत्साह से स्मरण करती है, उसी की व्यंजन भूषण ने की है| अतः भूषण हिंदू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं|

ज्ञानवापी मामले में “हिस्ट्री ऑफ बनारस” साक्ष्य के लिए कोर्ट में प्रस्तुत की गई है| माननीय न्यायालय में यदि सुधी जन-‘शिवाबावनी’ को भी साक्ष्य के रूप में देखे तो मंदिर पक्ष अधिक मजबूत होगा| औरंगजेब, वीर शिवाजी एवं महाकवि भूषण यह समकालीन है, तथ्य क्या सिद्ध है| यह ओजस्विनी और वीरदर्प पूर्णता अंश इसका प्रमाण है—

मठ विश्वनाथ को, न बास ग्राम गोकुल को,
देवी को न देहरा, न मंदिर गोपाल को||
गाढ़े गढ़ लिन्हे अरु बैरी कतलाम कीन्हे,
ठोर ठोर हासिल उगाहत है साल को “||

‘शिवा बावनी’ मैं औरंगजेब द्वारा हिंदुओं के धार्मिक स्थलों की तहस-नहस करने का विवरण प्रमुखता से दर्ज है| हिंदी साहित्य
के इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ठीक ही लिखा है—
“भूषण की कविता कवि-कीर्ति संबंधी एक अविचल सत्य का दृष्टांत है”| माननीय कोर्ट भी इस सत्य को अवश्य स्वीकार करेगा –ऐसी आशा है|

The Archaeological Survey of India (ASI) conducted a court-ordered scientific survey of the Gyanvapi mosque complex in Varanasi to determine if it was built over a pre-existing Hindu temple. The ASI report, submitted to the court, reportedly indicates the existence of a large Hindu temple prior to the current structure, with evidence of temple pillars being reused and inscriptions in Hindu scripts found. However, the Muslim side has contested these findings. The report and its implications are now central to the ongoing legal dispute.

डॉ इंद्रा देवी, लेखिका

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